Sunday, October 4, 2015

वर्तमान शिक्षा का सत्य

पूर्ववर्ती संप्रग सरकार से वर्तमान की एनडीए सरकार को जो शिक्षा व्यवस्था विरासत में मिली है, उसे सही करना वर्तमान सरकार के केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के लिए एक बहुत ही जटिल कार्य होगा और इसको सही करने के लिए उन्हें बहुत उर्जा खपानी होगी, क्योंकि देश की जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था है वो शायद दुनिया की सबसे ख़राब शिक्षा व्यवस्था में से एक है, दुनिया के सर्वोच्च शिक्षा संस्थानों की गिनती में भारत के एक भी संस्थान का न होना भी हमारे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करता है, जो देश पहले अपनी शिक्षा व्यवस्था के लिए विश्व में जाना जाता था आज उस देश की शिक्षा व्यवस्था की गिनती दुनिया की सबसे ख़राब शिक्षा व्यवस्था के रूप में हो रही है ये काफी गंभीर विषय है वर्तमान में यदि प्राथमिक स्कूलों की स्थिति को देखे तो बुनियादी सुविधाओ के अभाव में इसके हालत दिनों दिन और भी बिगड़ते जा रहे है, प्राथमिक स्कूलों में छात्रों से ज्यादा अध्यापकों की संख्या होती है, बावजूद इसके की यहा पर सरकार के द्वारा मुफ्त में शिक्षा दी जाती है वही निजी स्कूलों में मोटी रकम वसूलने के बाद भी अभिभावक अपने बच्चों को वही पढाना पसंद करते है, जिस देश में इतनी गरीबी हो वहा लोग अपनी मेहनत की कमाई ऐसे चीज में खपा रहे है जो उन्हें मुफ्त में मिल रही है लेकिन अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उन्हें मज़बूरी में ऐसा करना पड़ता है, इन निजी स्कूलों से गरीबों को छुटकारा दिलाने के लिए और प्राथमिक स्कूलों को मुख्य धरा से जोड़ने के लिए स्कूलों में कुछ बदलाव करना होगा जैसे की प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की संख्या को ठीक करना होगा और उनकी स्कूलों में उपस्थिति के प्रतिशत को शत प्रतिशत करना होगा, साथ ही शिक्षकों की योग्यता को ध्यान में रखते हुए उनका चयन करना होगा, क्योंकि वर्तमान में जो शिक्षक स्कूलों में पढ़ा रहे है वो ढंग से पांचवी कक्षा के सवाल तक हल नही कर पाते ऐसे में अध्यापकों के होते हुए भी हम शिक्षा के स्तर को सुधार नहीं सकते साथ ही स्कूलों को मुलभूत सुविधओं से लैस करना होगा जिसमे छात्रों के लिए अच्छे कमरे हो बैठने के लिए बैंच हो स्वच्छता के लिए शौचालय हो और आधुनिकता के साथ कदम मिलाने के लिए बिजली कम्प्यूटर और इन्टरनेट की व्यवस्था हो तब जाकर प्राथमिक स्कूल कही अभिभावकों का विश्वास जित पाएंगे ताकि वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों के बजाय प्राथमिक स्कूलों में भेजे अगर स्मृति ईरानी अपने पूर्ववर्तियो से कुछ अलग करना चाहती है तो उन्हें थोड़ी सी इच्छा शक्ति दिखानी होगी तो ये काम हो सकता है लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत पसीना बहाना होगा क्योंकि वर्षो से जिस शिक्षा को उसके किस्मत के भरोसे छोड़ दिया गया हो उसे सुधारना इतना आसान नही होगा....

                  

बुनियादी विकास को तरसते गाँव......


बचपन से यही सुनते सुनते बड़े हो गये की भारत गाँवों का देश है, और इसकी आत्मा गाँवो में ही बसती है, यहा की 70 प्रतिशत आबादी गाँवो में निवास करती है, और देश के विकाश में इन गाँवों का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन अगर इन गाँवों के विकास को देखा जाए तो सबसे ज्यादा उपेछित यही है, वर्षों से राजनेता आते रहे है और गाँव के विकास के नाम पर तो कभी किसानो के कल्याण के नाम पर, तो कभी पक्की सड़क बनवाने के नाम पर तो कभी स्कूल और अस्पताल खुलवाने के नाम पर वोट मागते रहे है, और हम हर बार उनपर विश्वास करके उन्हें वोट भी दे देते है, लेकिन आज भी गाँवो में विकास के ग्राफ को देखा जाए तो आज ये गाँव विकास तो छोडिये ये अपनी मुलभूत सुविधाओ के लिए भी तरस रहे है,किसानों को कृषि के लिए सिंचाईं और खाद की जरूरत पड़ती है सिंचाई के लिए उसे पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर रहना पड़ता है, क्योकि सिंचाई के लिए कोई और वैकल्पिक माध्यम उपलब्ध ही नही है जैसे नहर, टुबेल आदि, यदि मानसून अच्छा रहा और बारिश हो गयी तब तो ठीक है फसल भी अच्छी हो जाती है नही तो सब भगवान भरोसे ही छोड़ दिया जाता है, जबकि खाद में कालाबाजारी करने के बाद जो बचता है वह दिखने के लिए किसानों को दे दिया जाता है,कुछ लोगों का मानना ये भी है की वक़्त बदल गया है अब गाँव में मोबाइल आ गया है टीवी आ गया है इंटरनेट की वजह से लोग कंप्यूटर चलाने लगे है लेकिन क्या ये विकास है और यदि विकास है तो गाँव की बुनियादी सुविधओं का क्या जिसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, और मकान आते है, यदि गाँव की सड़कों को देखा जाए तो समझ में ही नही आता की सड़क पर गड्ढे बन गये है या गड्ढे में सड़क बनी हुई है और गलती से सड़क थोड़ी अच्छी निकली तो बचा खुचा काम नालियों से बहने वाली पानी से पूरा हो जाता है , क्योंकि घरो से निकालने के बाद उसके लिये न तो किसी गाँव के निवासी ने व्यवस्था की है और न ही सरकार कुछ कर रही है अगर कोई गलती से किसी को सड़क पर पानी बह्वाने के लिए मना कर दे तो बवाल होना तय है प्राथमिक विद्यालय की स्थिति को तो मत ही पूछिए वहा छात्र कम होते है और अध्यापक ज्यादा बाकि स्कूल बंद होने के बाद गाँव के जानवर वहा जगह बना लेते है बिजली तो ऐसी है की कब आती है और कब जाती है किसी को पता ही नही चलता, स्वास्थ की तो समस्या और भी बड़ी है, अस्पताल जाने के बाद पता ही नही चल पाता की कितने हजार मरीजों पर एक डॉक्टर है, इसलिए ज्यादा से ज्यदा मरीजों को अपने स्वस्थ के लिए झोला छाप डॉक्टरो पर ही आश्रित होना पड़ता है अक्सर हम सुनते है की एक आदमी ने पहाड़ काट के रास्ता बना दिया तो किसी ने अकेले ही पुरे व्यवस्था को बदल डाला ऐसे में अगर हम गाँव में एक ऐसे सरपंच को चुने जो गाँव के विकास के लिए कार्य करे और गाँव की सभी मुलभूत समस्याओं को ध्यान में रखकर उसके निवारण के लिए कार्य करे तो गाँव का विकास हो सकता है क्योकि हर बड़े काम की शुरुआत छोटे से ही होती है ........





Wednesday, July 27, 2011

कविता बस लिख गयी...

जिन्दगी है तो जज्बात है 
तेरे मेरे होने का एहसास है 
बड़ी मुश्किल है जिन्दगी की डगर 
फिर भी हम साथ चलने को तैयार है 
पता है हमे आएगे राह में रोड़े 
पर सामना करने को हम तैयार है 
अगर साथ दो तो जिन्दगी की कसम
मंजिल पे ले जाने को तैयार है.....

Sunday, March 13, 2011

..असली मुकाबला अब ...

..कौन बनेगा विजेता..?
इस बार क्रिकेट विश्वकप का आयोजन भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा है और भारत बंलादेश और श्रीलंका इसको मेजबानी कर रहे हैसमय विश्व कप ने अपनी रफ़्तार पकड ली है, दर्शक सभी मैचो  का पूरा पूरा आनंद ले रहे है,विश्व कप के आयोजन से पहले सभी देशो पर भारत का पलड़ा भारी माना जा रहा था लेकिन अभी तक भारत ने जितने भी मैच खेले है उसको देखते हुए अब दर्शको में संसय की स्थिति बन गयी है क्योकि भारत एक भी मैच उस तरह नही जीता है जिस तरह की उम्मीद भारतीय टीम से की जा रही थी  चाहे बंगलादेश से हो या आयरलैंड से सभी मैचो को जितने के लिए भारत को खासी मशक्कत  करनी पड़ी है,और इस बार ग्रुप बी में उलट फेर वाले पारीणमो ने दर्शको को चौका के रख दिया है चाहे वह इंग्लैंड पर आयरलैंड की जित हो या बंगलादेश की इस ग्रुप में जिस तरह से निष्कर्ष आ रहे है दर्शको को उम्मीद है की आने वाले दिनों में  इस ग्रुप में और चौकाने वाले परिणाम आ सकते है,क्योको भारत, इंग्लॅण्ड,वेस्टइंडीज और अफ्रीका टीम के साथ कुछ न कुछ परेशानी जुडी हुई है,ग्रुप ए में ऑस्ट्रेलिया की कमजोर माना जा रहा था क्योकि काफी समय से ऑस्ट्रेलिया के घरेलु मैचो में दबदबा नही रहा है इसलिए  ऑस्ट्रेलियन टीम विश्व कप जीतकर अपने समर्थको की भावनाओ को पूरा करना चाहेगी और ऑस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड  पर जित हासिल कर यह साबित कर दिया की अभी भी ऑस्ट्रेलियाई टीम में विजेता बनने का दमखम है,तो दूसरी तरफ श्रीलंका और पाकिस्तान की टीम भी पुरे जोश के साथ मैच खेल रही है,ग्रुप ए  में अभी तक जो भी मुकाबले हुए है सबका परिणाम टीम के अनुकूल ही रहा है लेकिन  ग्रुप बी में जो भी मुकाबले हुए है उसमे कोई भी मैच ऐसा नही हुआ है जिसका निष्कर्ष दर्शको को आसानी से मिल गया हो यहा हर एक मैच में दर्शको ने लास्ट बल तक मैच का मजा लिया है लेकिन ग्रुप बी का अब जो भी मुकाबला होना है उसी में पता चलेगा की कौन सी टीम कितनी अच्छी  है क्योको अभी इस टीम में भारत अफ्रीका और वेस्टइंडीज का आपस में मुकाबला है जो को इस ग्रूब से बिजेता के लिए मुख्या रूप से दावेदार  है और भारत का भी असली मुकाबला इन्ही दोनों से है अगर भारत इन दोनों देशो को धुल चटाने में कामयाब हो जाता है तो इस महाकुम्भ में विजेता के लिए दावेदार बन सकता है और भरतीय दर्शको को इन्ही दोनों देशो से होने वाले मैच का बेसब्री से इंतजार है तो आइये देखते है भारतीय टीम अपने समर्थको के उम्मीद पर कितना खरा उतरती है और ये १२ तारीख को अफ्रीका और भारत से होने वाले मैच के परिणाम के बाद ही मालूम होगा ..........

Friday, February 25, 2011

न जाने कहा गया वो

जब भी हम घर  से बाहर निकलते है तो अनेक चीजो से रूबरू होते है उनमे से कुछ याद रहती है कुछ भूल जाती है और कुछ तो हम भूलना  चाहे तो भी नही भूल पाते है,आज मै ऐसे ही शख्त के बारे में लिखने जा रहा हु जिसको मै चाह कर भी नही भूल पता हु,सोनू नाम का यह लड़का मेरे मेस  में कम करता था,उम्र मात्र दस या बारह साल थी लेकिन बात ऐसे करता था जैसे कोई बिद्वान हो मै जब उसे पहली बार देखा तभी लगा की यह उन लडको की तरह नही है जो काम करते है,क्योकि इसके काम करने का एक अलग ही अंदाज था चाहे वो थाली देने का हो या मेस  में रोटी सब्जी के साथ प्रवेश करने का फिर टेबल पर लाकर जिस सौम्यता से रखता था जैसे लगता था की एक लम्बी ट्रेनिंग के बाद यह आया है लेकिन उसके साथ ऐसा कुछ नही था जब उससे बात करो तो इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी बाते करता था की ऐसा महसूस होता था की कितना कुछ इससे सिखा जा सकता है मै शुरू  में उससे एक सामान्य छात्र की तरह ही मिलता था पर बिच बिच में उसे बुलाकर बात कर लिया करता था पर एक दिन मै लेट से मेस  में भोजन करने पहुचा तो वह अकेले बैठ कर दो तीन  लडको को खिला रहा था मै भी जाकर बैठ गया और उससे थाली लाने के लिए कहा वह थाली लेकर आया और कहा की भैया कुछ देर रुक जाइये अभी रोटी बन रही है फिर मैंने उससे कहा की जाओ बन जाए तो लेकर आना वह अभी रोटी लेन जा ही रहा था की हॉस्टल का एक लड़का किसी  बात को लेकर उसे गली देने लगा अभी कोई कुछ समझता तब तक उसे मार भी दिया फिर मै जाकर उसे छुडाया और रोटी लेन के लिए उसको भेज दिया वह रोटी लेकर आया और कुछ देर में सब खाकर चले गये बच गये बस मै और  वह मै भी खाने में मस्त था लेकिन कुछ देर बाद देखा तो वह रो रहा था फिर मैंने उससे कहा की ऐसा होता रहता है तुम आराम से काम करो फिर उसने कहा की भैया मै तीन  साल से मेस  में काम कर रहा हु और यह रहकर गली सुनने और मार खाने की तो आदत हो गयी है कोई न कोई दिन भर में दे ही देता है और अब बुरा भी नही लगता क्योकि मै जनता हु इतने लडको को मै सामान्य रूप से नही खिला पाउगा कोई न कोई छुट ही जाता है उसके बाद गली देना सुरु कर देता है इसलिए अब इसमें मजा भी आने लगा है वैसे कई दिनों से कोई गली नही दिया था यही सोच रहा था वो भी अब पूरा हो गया फिर उससे बात करने पे पता चला की उसकी माता जी घर पे है और पिताजी एक मेस  में काम करते है तो मैंने पुछा  की क्यों  नही अपने पापा के साथ ही काम करते हो तो उसने कहा की पापा के साथ रहकर मै काम नही कर पता हु क्योकि रोज मेरे सामने पापा को कोई न कोई  गली देता था पापा बच जाते तो कोई न कोई  मुझे तो दे ही देता था और यह सब अच्छा  नही लगता इसीलिए मै यहा काम करता हु उसके बाद मै वहा से चला आया लेकिन उसके द्वारा कही गयी बात बार बार याद आ रही थी और मै उससे दुबारा मिलने और बात करने के लिए शाम  के भोजन का इंतजार करने लगा क्योकि इसी  समय वह दुबारा मिलता जब मै शाम को मेस  में पहुचा तो मुझे देख  कर  ही वह थाली मेरे सामने लाकर रख दिया और हस्ते हुए बोला और मनेजर साहब क्या लाउ क्योकि इस महीने का मेष मैनेजर मै ही था इस तरह मै आज से जब मै मेस  में जाता मुझे देखते  ही वह थाली लाकर मेरा सामने रख देता और कुछ काम नही रहता  तो मेरे पास ही खड़ा रहकर बाते करता अब वह मेरे लिए मेस  में काम करने वाला एक लड़का नही था बल्कि वह अब मेरा एक अच्छा  साथी बन गया था जब भी वह खली रहता मेरे रूम में आ जाता और मै उसके साथ कैंटीन जाकर चाय पिता और बाते करता यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला उसके बाद एक दिन मै क्लास करके आ रहा था की वह रास्ते में मुझसे मिला और कहने लगा की आज मै मेस  छोड़कर जा रहा हु पापा आए है ले जाने के लिया तो मैंने सोचा की चलो कही काम ही करने जा रहा होगा अच्छा  है अब अपने पापा के साथ  ही काम करेगा और मै फिर वह  से हॉस्टल चला आया और वह अपने पापा के साथ घर चला गया लेकिन शाम  को जब मै मेस  में भोजन करने पहुचा तो अजीब लग रहा था न खाने का मन कर रहा था न किसी से बात करने का बस याद आ रहा था तो उसका चेहरा औएर उसके द्वारा कही गयी सब बाते और आज भी जब मै मेस  में पहुचता हु भोजन करने तो उसे भुला नही पा पाता हु .......

Wednesday, February 16, 2011

जिन्दगी का एक अनमोल सफ़र

 गुरूजी प्रणाम 
एक गुरु के रुप मे हम अपने माता  पिता से ही सबसे पहले शिक्षा  प्राप्त करते है फिर जाकर स्कुल कालेज और विश्वविधलय मे एक गुरु से, तो आइए बात  करते है घर से शुरू  हुइ शिक्षा कैसे विश्वविधालय तक  पहुचती है और इस दौरान हम किन किन परिस्थितियो से होकर गुजरते है, जब हम पहली बार  अपने माता  पिता से शिक्षा  प्राप्त  करते है तो शायद ही  हमे यह ज्ञात  होता है कि यही वह चीज  है जो आगे चलकर हमारी जिन्दगी कि दिशा को तय करेगी लेकिन बीना  किसी ज्ञान के हम ईमानदारी  से पढाई  करते है और एक वक्त आता है जब हम घर पर  माता  पिता के द्वारा प्राथमिक शिक्षा  पुरी कर स्कुल जाते है स्कुल के पहले दो चार दिन सभी के लिए बहुत  ही  अच्छे  होते  है उसके बाद स्कुल के नियम कानुन जब हम पर हावी होने लगते है और हम अपने मन से कुछ  नही कर पाते तो हमेशा  यही सोचते  कि कैसे इससे छुटकारा मिलेगा फिर सिलसिला शुरू  होता है झुठ बोलने का बहाने  बनाकर स्कुल न जाने और जाना पड़ता तो गुरूजी के न आने का इंतजार  इत्यादी लेकिन लाख कोशिशो  के बाद भी हमे छुटकारा नही मिल पाता और हमे स्कुल जाना  ही  पड़ता था स्कुल की  परेशानी  यही होती  की  हम चाह कर भी अपने मन का काम  नही कर पाते हमे वही करना   पड़ता जो अध्यापको  के द्वारा कहा जाता और कभी गलती   से उनके द्वारा कहे  गए कर्यो को नही कर पाते और पकडे जाते तो पिटाई निश्चित  होती फिर उस अध्यापक के प्रति जो हमारी सोच होती उसको तो आप सबने  भी महसुस कियाँ होगा लेकिन हम लाख कोशिशो के बाद भी अपनी भावनाओ का गला अपने मन मे ही  घोट देते क्योकि  हम चाह कर भी अपने उस अध्यापक का कुछ नही कर पाते और  उसी मे कुछ ऐसे भी अध्यापक होते  जिसे देखकर हम फिर से खुश हो जाते क्योकि  हमे मालुम होता कि अब हम अपने मन कि कर सकते है लेकिन यह खुशी कुछ देर के लिए ही  होती क्योकि   फिर हमे कोई एसा  अध्यापक मिल जाता जिसके   बारे मे हम यही सोचते कि काश  यह जल्दी  से जाते और हमे खेलने  का मौका मिल जाता और यह सिलसिला जब तक  हम स्कुल के छात्र  होते  है चलता  रहता  है, स्कुल से शिक्षा पुरी करने  के बाद हम आगे की  पढ़ाई के लिए कालेज जाते है जहा  पर अब वे बंदिशे नही रह जाती  जो पहले थी  अब हम कुछ स्वतंत्र  होते  है और अपने मन से भी कुछ कर लेते इससे पहले  हमे हर काम के लिए बार बार   कहा जाता और पुरा न करने  पर पिटाई भी कि जाती यहा भी  हर काम को करने     के लिए कहा जाता था लेकिन शायद  ही कोइ पूछता  की काम  पूरा हुआ है  या नही और पूरा  न होने पर सायद ही  किसी अध्यापक की  डाट पड़ती  इस समय सबसे मजेदार  चीज  यह होता है कि हमे कुछ ऐसे अध्यापक भी मिलते  है जो अध्यापक कम और दोस्त ज्यादा होते  है जिसके  कारण कुछ गल्तिया भी हो जाती तो शायद हि कोइ बोलता क्योकि  जिसको बोलना होता है वही हमारे साथ होते है परीक्षा आने  पर यह डर  भी हमे उतना  नही सताता  क्योकी पढ़ाई  करके  अगर हम परीक्षा  पास नही कर पाते तो उसके  अलावा भी हमारे पास परीक्षा  मे पास होने के अनेक साधन होते है जिसके द्वारा हम परीक्षा तो पास कर ही लेते है(नक़ल करके ) सभी छात्र  इससे जरुर कभी न कभी रूबरू  होते  है  जबकि हम जैसे बार बार होते  है और यह तब तक  जारी रहता  है जब तक  परिस्थितिया   हमारे साथ होती है, कोलेज से शिक्षा  पुरी करने  के बाद हम विश्विविधालय आते   है तो हम पूर्ण  रुप से स्वतन्त्र होते  है और हमे ही  यह फैसला करना  होता है कि हमे क्या करना  है  अध्यापक यहा पे सिखाते जरुर है लेकिन आप कितना सिख रहे है शायद ही कोई पूछता है जो भी करना होता है यहा पर अपने से ही करना पड़ता है बचपन में हमे सिखाया जाता था आज हमे सीखना पड़ता है,  साथ ही  जिन्दगी भी हमे बहुत  कुछ सिखाती हैवे सारे  दिन याद आते  है जिसको हम गुजार  चुके होते  है उनमें  से कुछ अच्छी   यादे होती है जिसको सोचकर हम खुश हो जाते और कुछ बुरी यादे होती है जिसे सोचकर पश्चाताप  भी होता है फिर अतित और वर्तमान   के बीच एक सामंजश्य बनाते हुए  अपने भविष्य को निर्धारित करते है
 पिछले सभी परिस्थितिओ को देख जब हम उन  पर विचार करते है तो वो दिन भी अच्छे   लगने  लगते है जो हमारे बचपन के सबसे बुरे दिन होते  है क्योकि  आज हमे यह एहसास होता है कि जो हमारे माता  पिता और अध्यापको  ने jo किया हमारे अच्छे   भविष्य के लिए ही किया 

Monday, February 14, 2011

ये नये जमाने का शहर है

भारत को गाव का देश कहा जाता है क्योकि यहा की आधा से ज्यादा आबादी गाव में रहती है लेकिन इस समय देश शाहरीकरण के दौर से गुजर रहा है एक तरफ पुराने शहर  अपना सतीत्व खोते जा रहे है जैसे (कलकत्ता बनारस) तो  दूसरी तरफ नये शहर साइबर  सिटी के नाम से सतीत्व में आ रहे है (चेन्नई बंगलोर) वही गाव और कस्बो से शहर जाने वालो की संख्या में भरी मात्रा में ब्रिधि हुई है आज देश में लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप में शहरो से जरुर जुड़े हुए है इसको देखते हुए अब हम यह कह सकते है की भारत अब गाव में नही बल्कि भारतीय गाव अब शहरो में बसने लगे है शाहरीकरण  का यह दौर  अपने साथ कुछ सकारात्मक पहलु जोड़े हुए है तो अनेक नकरात्म पहलु भी अपने साथ समेटे हुए है
नया शहर नये लोग 
आज के शहरो में लाइट रोड और बिल्डिंगे तो उच्च कोटि की है लेकिन शहर वालो में जीने का उल्लास नही है लोग यहा एक दुसरे के जितने करीब दिखते है हकीकत में वह एक दुसरे से बहुत ही दूर है इसी में सुचना क्रांति ने विकाश ने मानव के संबंधो को बहुत ही दूर कर दिया है आज इन शहर वालो को पूरी दुनिया में क्या हो रहा है उसकी खबर मालूम होती है लेकिन पड़ोस में कौन है और कैसे है यह नही मालूम होता है आज के इन शहरो में रोड लाइट और बिल्डिंगो का तो बहुत विकाश हुआ है या हो रहा है लेकिन यहा पे रह रहे लोगो के जीवन स्तर में बहुत ही कम विकाश हुआ है और इसके  विकास की स्पीड भी बहुत ही धीरी है इसीलिए आज देश उस तरह से विकास नही कर पा रहा है जिस रफ़्तार की जरूरत है रोड लाइट और बिल्डिंगो को बनाकर हम एक शहर को जरुर ही सम्प्पन  बना सकते है लेकिन वहा के लोगो के जीवन स्तर को नही सुधरा जा सकता है एक विकशित शहर वही होता है जहा पे रोड लाइट और बिल्डिंगो के साथ एक विकसित मानव जाती  बस्ती है जिसके कुछ मूल्य,संस्कृति और जीवन का एक स्तर होता है इसी लिए आज भारत शाहरीकरण  की तेज रफ़्तार और विकसित अर्थव्यवस्था  के बाद भी मानव विकाश सूचकांक में काफी नीचे है
आज के शहरो ने एक तरफ गाव के जाति पति के भेद भाव को कम किया है तो दूसरी तरफ मानव संबंधो के सारे नियम अभी टूटे नही है तो टूटने की कगार पर है अंतरंगता का जो मुखौटा कही दूर छुट गया था वह अब इन शहरो के साथ पुन:जीवित हो चला है आज भी इन शहरो में गरीब लोगो के लिए कोई जगह नही है और किसी शहर में जगह मिल भी गया तो आप वहा अपना घर नही बसा सकते है इन शहरो में आप अपना दिल  बहला सकते है लेकिन मन  नही लगा सकते है आप यहा अपना घर बसा सकते है लेकिन उस बसे हुए घर को महसूस नही कर सकते है भाग दौड़ भरे इन शहरो में ब्रांडेड चीजो की कीमत है लेकिन एक अकुशल ब्यक्ति की कोई भी कीमत नही है परम्पराओ और आधुनिकता के बिच कसमक्साते  इन शहरो की कहनी हमारी अपनी कहनी है .........
आज इन शहरो के पास सब कुछ है लेकिन एक वक़्त के बाद सब निर्थक लगने लगता है आखिर क्यों.....जवाब हमे खुद ही तलासने होगे शायद हमारी सोच में  मानव जीवन की जो प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए नही मिल पा रही है