Friday, February 25, 2011

न जाने कहा गया वो

जब भी हम घर  से बाहर निकलते है तो अनेक चीजो से रूबरू होते है उनमे से कुछ याद रहती है कुछ भूल जाती है और कुछ तो हम भूलना  चाहे तो भी नही भूल पाते है,आज मै ऐसे ही शख्त के बारे में लिखने जा रहा हु जिसको मै चाह कर भी नही भूल पता हु,सोनू नाम का यह लड़का मेरे मेस  में कम करता था,उम्र मात्र दस या बारह साल थी लेकिन बात ऐसे करता था जैसे कोई बिद्वान हो मै जब उसे पहली बार देखा तभी लगा की यह उन लडको की तरह नही है जो काम करते है,क्योकि इसके काम करने का एक अलग ही अंदाज था चाहे वो थाली देने का हो या मेस  में रोटी सब्जी के साथ प्रवेश करने का फिर टेबल पर लाकर जिस सौम्यता से रखता था जैसे लगता था की एक लम्बी ट्रेनिंग के बाद यह आया है लेकिन उसके साथ ऐसा कुछ नही था जब उससे बात करो तो इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी बाते करता था की ऐसा महसूस होता था की कितना कुछ इससे सिखा जा सकता है मै शुरू  में उससे एक सामान्य छात्र की तरह ही मिलता था पर बिच बिच में उसे बुलाकर बात कर लिया करता था पर एक दिन मै लेट से मेस  में भोजन करने पहुचा तो वह अकेले बैठ कर दो तीन  लडको को खिला रहा था मै भी जाकर बैठ गया और उससे थाली लाने के लिए कहा वह थाली लेकर आया और कहा की भैया कुछ देर रुक जाइये अभी रोटी बन रही है फिर मैंने उससे कहा की जाओ बन जाए तो लेकर आना वह अभी रोटी लेन जा ही रहा था की हॉस्टल का एक लड़का किसी  बात को लेकर उसे गली देने लगा अभी कोई कुछ समझता तब तक उसे मार भी दिया फिर मै जाकर उसे छुडाया और रोटी लेन के लिए उसको भेज दिया वह रोटी लेकर आया और कुछ देर में सब खाकर चले गये बच गये बस मै और  वह मै भी खाने में मस्त था लेकिन कुछ देर बाद देखा तो वह रो रहा था फिर मैंने उससे कहा की ऐसा होता रहता है तुम आराम से काम करो फिर उसने कहा की भैया मै तीन  साल से मेस  में काम कर रहा हु और यह रहकर गली सुनने और मार खाने की तो आदत हो गयी है कोई न कोई दिन भर में दे ही देता है और अब बुरा भी नही लगता क्योकि मै जनता हु इतने लडको को मै सामान्य रूप से नही खिला पाउगा कोई न कोई छुट ही जाता है उसके बाद गली देना सुरु कर देता है इसलिए अब इसमें मजा भी आने लगा है वैसे कई दिनों से कोई गली नही दिया था यही सोच रहा था वो भी अब पूरा हो गया फिर उससे बात करने पे पता चला की उसकी माता जी घर पे है और पिताजी एक मेस  में काम करते है तो मैंने पुछा  की क्यों  नही अपने पापा के साथ ही काम करते हो तो उसने कहा की पापा के साथ रहकर मै काम नही कर पता हु क्योकि रोज मेरे सामने पापा को कोई न कोई  गली देता था पापा बच जाते तो कोई न कोई  मुझे तो दे ही देता था और यह सब अच्छा  नही लगता इसीलिए मै यहा काम करता हु उसके बाद मै वहा से चला आया लेकिन उसके द्वारा कही गयी बात बार बार याद आ रही थी और मै उससे दुबारा मिलने और बात करने के लिए शाम  के भोजन का इंतजार करने लगा क्योकि इसी  समय वह दुबारा मिलता जब मै शाम को मेस  में पहुचा तो मुझे देख  कर  ही वह थाली मेरे सामने लाकर रख दिया और हस्ते हुए बोला और मनेजर साहब क्या लाउ क्योकि इस महीने का मेष मैनेजर मै ही था इस तरह मै आज से जब मै मेस  में जाता मुझे देखते  ही वह थाली लाकर मेरा सामने रख देता और कुछ काम नही रहता  तो मेरे पास ही खड़ा रहकर बाते करता अब वह मेरे लिए मेस  में काम करने वाला एक लड़का नही था बल्कि वह अब मेरा एक अच्छा  साथी बन गया था जब भी वह खली रहता मेरे रूम में आ जाता और मै उसके साथ कैंटीन जाकर चाय पिता और बाते करता यह सिलसिला कुछ दिनों तक चला उसके बाद एक दिन मै क्लास करके आ रहा था की वह रास्ते में मुझसे मिला और कहने लगा की आज मै मेस  छोड़कर जा रहा हु पापा आए है ले जाने के लिया तो मैंने सोचा की चलो कही काम ही करने जा रहा होगा अच्छा  है अब अपने पापा के साथ  ही काम करेगा और मै फिर वह  से हॉस्टल चला आया और वह अपने पापा के साथ घर चला गया लेकिन शाम  को जब मै मेस  में भोजन करने पहुचा तो अजीब लग रहा था न खाने का मन कर रहा था न किसी से बात करने का बस याद आ रहा था तो उसका चेहरा औएर उसके द्वारा कही गयी सब बाते और आज भी जब मै मेस  में पहुचता हु भोजन करने तो उसे भुला नही पा पाता हु .......

Wednesday, February 16, 2011

जिन्दगी का एक अनमोल सफ़र

 गुरूजी प्रणाम 
एक गुरु के रुप मे हम अपने माता  पिता से ही सबसे पहले शिक्षा  प्राप्त करते है फिर जाकर स्कुल कालेज और विश्वविधलय मे एक गुरु से, तो आइए बात  करते है घर से शुरू  हुइ शिक्षा कैसे विश्वविधालय तक  पहुचती है और इस दौरान हम किन किन परिस्थितियो से होकर गुजरते है, जब हम पहली बार  अपने माता  पिता से शिक्षा  प्राप्त  करते है तो शायद ही  हमे यह ज्ञात  होता है कि यही वह चीज  है जो आगे चलकर हमारी जिन्दगी कि दिशा को तय करेगी लेकिन बीना  किसी ज्ञान के हम ईमानदारी  से पढाई  करते है और एक वक्त आता है जब हम घर पर  माता  पिता के द्वारा प्राथमिक शिक्षा  पुरी कर स्कुल जाते है स्कुल के पहले दो चार दिन सभी के लिए बहुत  ही  अच्छे  होते  है उसके बाद स्कुल के नियम कानुन जब हम पर हावी होने लगते है और हम अपने मन से कुछ  नही कर पाते तो हमेशा  यही सोचते  कि कैसे इससे छुटकारा मिलेगा फिर सिलसिला शुरू  होता है झुठ बोलने का बहाने  बनाकर स्कुल न जाने और जाना पड़ता तो गुरूजी के न आने का इंतजार  इत्यादी लेकिन लाख कोशिशो  के बाद भी हमे छुटकारा नही मिल पाता और हमे स्कुल जाना  ही  पड़ता था स्कुल की  परेशानी  यही होती  की  हम चाह कर भी अपने मन का काम  नही कर पाते हमे वही करना   पड़ता जो अध्यापको  के द्वारा कहा जाता और कभी गलती   से उनके द्वारा कहे  गए कर्यो को नही कर पाते और पकडे जाते तो पिटाई निश्चित  होती फिर उस अध्यापक के प्रति जो हमारी सोच होती उसको तो आप सबने  भी महसुस कियाँ होगा लेकिन हम लाख कोशिशो के बाद भी अपनी भावनाओ का गला अपने मन मे ही  घोट देते क्योकि  हम चाह कर भी अपने उस अध्यापक का कुछ नही कर पाते और  उसी मे कुछ ऐसे भी अध्यापक होते  जिसे देखकर हम फिर से खुश हो जाते क्योकि  हमे मालुम होता कि अब हम अपने मन कि कर सकते है लेकिन यह खुशी कुछ देर के लिए ही  होती क्योकि   फिर हमे कोई एसा  अध्यापक मिल जाता जिसके   बारे मे हम यही सोचते कि काश  यह जल्दी  से जाते और हमे खेलने  का मौका मिल जाता और यह सिलसिला जब तक  हम स्कुल के छात्र  होते  है चलता  रहता  है, स्कुल से शिक्षा पुरी करने  के बाद हम आगे की  पढ़ाई के लिए कालेज जाते है जहा  पर अब वे बंदिशे नही रह जाती  जो पहले थी  अब हम कुछ स्वतंत्र  होते  है और अपने मन से भी कुछ कर लेते इससे पहले  हमे हर काम के लिए बार बार   कहा जाता और पुरा न करने  पर पिटाई भी कि जाती यहा भी  हर काम को करने     के लिए कहा जाता था लेकिन शायद  ही कोइ पूछता  की काम  पूरा हुआ है  या नही और पूरा  न होने पर सायद ही  किसी अध्यापक की  डाट पड़ती  इस समय सबसे मजेदार  चीज  यह होता है कि हमे कुछ ऐसे अध्यापक भी मिलते  है जो अध्यापक कम और दोस्त ज्यादा होते  है जिसके  कारण कुछ गल्तिया भी हो जाती तो शायद हि कोइ बोलता क्योकि  जिसको बोलना होता है वही हमारे साथ होते है परीक्षा आने  पर यह डर  भी हमे उतना  नही सताता  क्योकी पढ़ाई  करके  अगर हम परीक्षा  पास नही कर पाते तो उसके  अलावा भी हमारे पास परीक्षा  मे पास होने के अनेक साधन होते है जिसके द्वारा हम परीक्षा तो पास कर ही लेते है(नक़ल करके ) सभी छात्र  इससे जरुर कभी न कभी रूबरू  होते  है  जबकि हम जैसे बार बार होते  है और यह तब तक  जारी रहता  है जब तक  परिस्थितिया   हमारे साथ होती है, कोलेज से शिक्षा  पुरी करने  के बाद हम विश्विविधालय आते   है तो हम पूर्ण  रुप से स्वतन्त्र होते  है और हमे ही  यह फैसला करना  होता है कि हमे क्या करना  है  अध्यापक यहा पे सिखाते जरुर है लेकिन आप कितना सिख रहे है शायद ही कोई पूछता है जो भी करना होता है यहा पर अपने से ही करना पड़ता है बचपन में हमे सिखाया जाता था आज हमे सीखना पड़ता है,  साथ ही  जिन्दगी भी हमे बहुत  कुछ सिखाती हैवे सारे  दिन याद आते  है जिसको हम गुजार  चुके होते  है उनमें  से कुछ अच्छी   यादे होती है जिसको सोचकर हम खुश हो जाते और कुछ बुरी यादे होती है जिसे सोचकर पश्चाताप  भी होता है फिर अतित और वर्तमान   के बीच एक सामंजश्य बनाते हुए  अपने भविष्य को निर्धारित करते है
 पिछले सभी परिस्थितिओ को देख जब हम उन  पर विचार करते है तो वो दिन भी अच्छे   लगने  लगते है जो हमारे बचपन के सबसे बुरे दिन होते  है क्योकि  आज हमे यह एहसास होता है कि जो हमारे माता  पिता और अध्यापको  ने jo किया हमारे अच्छे   भविष्य के लिए ही किया 

Monday, February 14, 2011

ये नये जमाने का शहर है

भारत को गाव का देश कहा जाता है क्योकि यहा की आधा से ज्यादा आबादी गाव में रहती है लेकिन इस समय देश शाहरीकरण के दौर से गुजर रहा है एक तरफ पुराने शहर  अपना सतीत्व खोते जा रहे है जैसे (कलकत्ता बनारस) तो  दूसरी तरफ नये शहर साइबर  सिटी के नाम से सतीत्व में आ रहे है (चेन्नई बंगलोर) वही गाव और कस्बो से शहर जाने वालो की संख्या में भरी मात्रा में ब्रिधि हुई है आज देश में लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप में शहरो से जरुर जुड़े हुए है इसको देखते हुए अब हम यह कह सकते है की भारत अब गाव में नही बल्कि भारतीय गाव अब शहरो में बसने लगे है शाहरीकरण  का यह दौर  अपने साथ कुछ सकारात्मक पहलु जोड़े हुए है तो अनेक नकरात्म पहलु भी अपने साथ समेटे हुए है
नया शहर नये लोग 
आज के शहरो में लाइट रोड और बिल्डिंगे तो उच्च कोटि की है लेकिन शहर वालो में जीने का उल्लास नही है लोग यहा एक दुसरे के जितने करीब दिखते है हकीकत में वह एक दुसरे से बहुत ही दूर है इसी में सुचना क्रांति ने विकाश ने मानव के संबंधो को बहुत ही दूर कर दिया है आज इन शहर वालो को पूरी दुनिया में क्या हो रहा है उसकी खबर मालूम होती है लेकिन पड़ोस में कौन है और कैसे है यह नही मालूम होता है आज के इन शहरो में रोड लाइट और बिल्डिंगो का तो बहुत विकाश हुआ है या हो रहा है लेकिन यहा पे रह रहे लोगो के जीवन स्तर में बहुत ही कम विकाश हुआ है और इसके  विकास की स्पीड भी बहुत ही धीरी है इसीलिए आज देश उस तरह से विकास नही कर पा रहा है जिस रफ़्तार की जरूरत है रोड लाइट और बिल्डिंगो को बनाकर हम एक शहर को जरुर ही सम्प्पन  बना सकते है लेकिन वहा के लोगो के जीवन स्तर को नही सुधरा जा सकता है एक विकशित शहर वही होता है जहा पे रोड लाइट और बिल्डिंगो के साथ एक विकसित मानव जाती  बस्ती है जिसके कुछ मूल्य,संस्कृति और जीवन का एक स्तर होता है इसी लिए आज भारत शाहरीकरण  की तेज रफ़्तार और विकसित अर्थव्यवस्था  के बाद भी मानव विकाश सूचकांक में काफी नीचे है
आज के शहरो ने एक तरफ गाव के जाति पति के भेद भाव को कम किया है तो दूसरी तरफ मानव संबंधो के सारे नियम अभी टूटे नही है तो टूटने की कगार पर है अंतरंगता का जो मुखौटा कही दूर छुट गया था वह अब इन शहरो के साथ पुन:जीवित हो चला है आज भी इन शहरो में गरीब लोगो के लिए कोई जगह नही है और किसी शहर में जगह मिल भी गया तो आप वहा अपना घर नही बसा सकते है इन शहरो में आप अपना दिल  बहला सकते है लेकिन मन  नही लगा सकते है आप यहा अपना घर बसा सकते है लेकिन उस बसे हुए घर को महसूस नही कर सकते है भाग दौड़ भरे इन शहरो में ब्रांडेड चीजो की कीमत है लेकिन एक अकुशल ब्यक्ति की कोई भी कीमत नही है परम्पराओ और आधुनिकता के बिच कसमक्साते  इन शहरो की कहनी हमारी अपनी कहनी है .........
आज इन शहरो के पास सब कुछ है लेकिन एक वक़्त के बाद सब निर्थक लगने लगता है आखिर क्यों.....जवाब हमे खुद ही तलासने होगे शायद हमारी सोच में  मानव जीवन की जो प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए नही मिल पा रही है

Tuesday, February 8, 2011

लडकियों के प्रति नही बदली है सोच

कास सबको ऐसा प्यार मिलता 
अजीब बिडंबना है इस देश की जहा मातृसत्ता की पूजा की जाती है वही न जाने कितने लडकियों को पुत्र प्राप्ति की लालसा में जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है, सरकार भ्रूण हत्या को रोकने के लिए  जागरूकता के नाम पर करोड़ो रूपये खर्च कर रही है फिर भी कोई लगाम लगाने में कामयाब नही हो पा रही है इसका सीधा सा मतलब है की सरकारी तंत्र अपने काम के प्रति  लापरवाही बरत रहा है तभी भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को रोकने में कामयाब नही हो पा रही है शहरो की बात करे तो स्थिति थोड़ी सही है लेकिन  गावो में आज भी लडकियों को बोझ ही समझा जाता है समाज में आज भी लडकियों की तुलना  में लडको को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है यहा तक की जब विवाहित औरते पुत्र को जन्म देती है तो उन्हें आशीर्वाद दिया जाता है घर मोह्हले  में मीठाइया  बाटी जाती है जबकि लडकियों के जन्म पर ऐसा कुछ भी नही किया जाता है इस तरह के कार्यो और सोच को जमीनी स्तर  पर कार्य करके रोका जा सकता है लोगो को यह विशवास दिलाया जा सकता है की लडकिय आज किसी भी मायने में लडको से काम नही है दोनों ही  समान है केवल लडको से ही वंस नही चलता  उसके लिए  लडकियों का भी होना जरूरी है आज भ्रूण हत्या के कारण ही हजार लडको पर ९५१ लडकिया है और यह नही रुका तो वह दिन दूर नही जब शादी  के लिए लडकियों का  टोटा होगा  
एक सर्वे के अनुसार भ्रूण हत्या के मामले में उo प्रo सबसे आगे है यहा हर साल दो लाख लडकियों को जन्म लेने से पहले ही मर दिया जाता है जबकि पुरे देश में लगभग सात लाख लडकियों की हत्या कर दी जाती है इसपर लगाम लगाने के लिए सरकार ने सजा का भी प्रावधान किया है जिसके अंतर्गत पाए जाने वाले दोषी को एक लाख रुपया का जुरमाना और पाच साल की कैद हो सकती है लेकिन सत्य यही है की  न तो अभी तक सरकार इसे रोक पाई है और न ही इसमें  कमी ला पाई है और आज तक  सायद ही किसी को इसके लिए सजा भी मिला है 
देश में आज हर समय समानता और विकाश की बात की जा रही है लेकिन सच्चाई  यही है की लाख प्रयासों के बाद भी आज देश में लडकियों  के प्रति सामाजिक  सोच नही बदली है आज भी लडकियों की वही स्थिति है जो पहले थी कल भी लडकियों को बोझ समझा जाता था आज भी लडकियों को बोझ ही समझा जा रहा है आज इक पुत्र प्राप्ति के लालच में माता पिता न जाने कितने लडकियों की बलि इ देते है  .......अगर एक  जिन्दगी का मतलब कई लडकियों का बलिदान है तो उस   जिन्दगी को कौन जीना चाहेगा 

Friday, February 4, 2011

सुकुन के लिए सवेदनहिन् होते लोग


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