Monday, February 14, 2011

ये नये जमाने का शहर है

भारत को गाव का देश कहा जाता है क्योकि यहा की आधा से ज्यादा आबादी गाव में रहती है लेकिन इस समय देश शाहरीकरण के दौर से गुजर रहा है एक तरफ पुराने शहर  अपना सतीत्व खोते जा रहे है जैसे (कलकत्ता बनारस) तो  दूसरी तरफ नये शहर साइबर  सिटी के नाम से सतीत्व में आ रहे है (चेन्नई बंगलोर) वही गाव और कस्बो से शहर जाने वालो की संख्या में भरी मात्रा में ब्रिधि हुई है आज देश में लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप में शहरो से जरुर जुड़े हुए है इसको देखते हुए अब हम यह कह सकते है की भारत अब गाव में नही बल्कि भारतीय गाव अब शहरो में बसने लगे है शाहरीकरण  का यह दौर  अपने साथ कुछ सकारात्मक पहलु जोड़े हुए है तो अनेक नकरात्म पहलु भी अपने साथ समेटे हुए है
नया शहर नये लोग 
आज के शहरो में लाइट रोड और बिल्डिंगे तो उच्च कोटि की है लेकिन शहर वालो में जीने का उल्लास नही है लोग यहा एक दुसरे के जितने करीब दिखते है हकीकत में वह एक दुसरे से बहुत ही दूर है इसी में सुचना क्रांति ने विकाश ने मानव के संबंधो को बहुत ही दूर कर दिया है आज इन शहर वालो को पूरी दुनिया में क्या हो रहा है उसकी खबर मालूम होती है लेकिन पड़ोस में कौन है और कैसे है यह नही मालूम होता है आज के इन शहरो में रोड लाइट और बिल्डिंगो का तो बहुत विकाश हुआ है या हो रहा है लेकिन यहा पे रह रहे लोगो के जीवन स्तर में बहुत ही कम विकाश हुआ है और इसके  विकास की स्पीड भी बहुत ही धीरी है इसीलिए आज देश उस तरह से विकास नही कर पा रहा है जिस रफ़्तार की जरूरत है रोड लाइट और बिल्डिंगो को बनाकर हम एक शहर को जरुर ही सम्प्पन  बना सकते है लेकिन वहा के लोगो के जीवन स्तर को नही सुधरा जा सकता है एक विकशित शहर वही होता है जहा पे रोड लाइट और बिल्डिंगो के साथ एक विकसित मानव जाती  बस्ती है जिसके कुछ मूल्य,संस्कृति और जीवन का एक स्तर होता है इसी लिए आज भारत शाहरीकरण  की तेज रफ़्तार और विकसित अर्थव्यवस्था  के बाद भी मानव विकाश सूचकांक में काफी नीचे है
आज के शहरो ने एक तरफ गाव के जाति पति के भेद भाव को कम किया है तो दूसरी तरफ मानव संबंधो के सारे नियम अभी टूटे नही है तो टूटने की कगार पर है अंतरंगता का जो मुखौटा कही दूर छुट गया था वह अब इन शहरो के साथ पुन:जीवित हो चला है आज भी इन शहरो में गरीब लोगो के लिए कोई जगह नही है और किसी शहर में जगह मिल भी गया तो आप वहा अपना घर नही बसा सकते है इन शहरो में आप अपना दिल  बहला सकते है लेकिन मन  नही लगा सकते है आप यहा अपना घर बसा सकते है लेकिन उस बसे हुए घर को महसूस नही कर सकते है भाग दौड़ भरे इन शहरो में ब्रांडेड चीजो की कीमत है लेकिन एक अकुशल ब्यक्ति की कोई भी कीमत नही है परम्पराओ और आधुनिकता के बिच कसमक्साते  इन शहरो की कहनी हमारी अपनी कहनी है .........
आज इन शहरो के पास सब कुछ है लेकिन एक वक़्त के बाद सब निर्थक लगने लगता है आखिर क्यों.....जवाब हमे खुद ही तलासने होगे शायद हमारी सोच में  मानव जीवन की जो प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए नही मिल पा रही है

5 comments:

  1. nice attempt , do some rectification with sentence framing and punctuation as well.
    nice going dude.and put up something interested in BODY , although your conclusion is good but i am expecting more by the whole package ,

    And follow all the points of Mukul sir .
    Blessings!!

    RoGGeR,

    Ratnendra K P

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  2. @रत्नेंद्र ने कह दिया सब कुछ दीपू ये दिल मांगे मोर बात शुरू तो अच्छी हुई पर मामला अंत तक ठीक से नहीं आया पर एक नयी सोच आभार

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  3. suruat ho gyi hai to ant to hoga hi........sir

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  4. nice job......shayad hum modern hote-hote apni jdon ko bhul rhe hain...

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  5. sahi keh re ho,kuch had tak hm bhi sehmat hai tumhari baato se...

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