पूर्ववर्ती
संप्रग सरकार से वर्तमान की एनडीए सरकार को जो शिक्षा व्यवस्था विरासत में मिली है,
उसे सही करना वर्तमान सरकार के केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के
लिए एक बहुत ही जटिल कार्य होगा और इसको सही करने के लिए उन्हें बहुत उर्जा खपानी
होगी, क्योंकि देश की जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था है वो शायद दुनिया की सबसे ख़राब
शिक्षा व्यवस्था में से एक है, दुनिया के सर्वोच्च शिक्षा संस्थानों की गिनती में
भारत के एक भी संस्थान का न होना भी हमारे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया
निशान खड़ा करता है, जो देश पहले अपनी शिक्षा व्यवस्था के लिए विश्व में जाना जाता
था आज उस देश की शिक्षा व्यवस्था की गिनती दुनिया की सबसे ख़राब शिक्षा व्यवस्था के
रूप में हो रही है ये काफी गंभीर विषय है वर्तमान में यदि प्राथमिक स्कूलों की
स्थिति को देखे तो बुनियादी सुविधाओ के अभाव में इसके हालत दिनों दिन और भी बिगड़ते
जा रहे है, प्राथमिक स्कूलों में छात्रों से ज्यादा अध्यापकों की संख्या होती है,
बावजूद इसके की यहा पर सरकार के द्वारा मुफ्त में शिक्षा दी जाती है वही निजी
स्कूलों में मोटी रकम वसूलने के बाद भी अभिभावक अपने बच्चों को वही पढाना पसंद
करते है, जिस देश में इतनी गरीबी हो वहा लोग अपनी मेहनत की कमाई ऐसे चीज में खपा
रहे है जो उन्हें मुफ्त में मिल रही है लेकिन अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए
उन्हें मज़बूरी में ऐसा करना पड़ता है, इन निजी स्कूलों से गरीबों को छुटकारा दिलाने
के लिए और प्राथमिक स्कूलों को मुख्य धरा से जोड़ने के लिए स्कूलों में कुछ बदलाव
करना होगा जैसे की प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की संख्या को ठीक करना होगा और
उनकी स्कूलों में उपस्थिति के प्रतिशत को शत प्रतिशत करना होगा, साथ ही शिक्षकों
की योग्यता को ध्यान में रखते हुए उनका चयन करना होगा, क्योंकि वर्तमान में जो
शिक्षक स्कूलों में पढ़ा रहे है वो ढंग से पांचवी कक्षा के सवाल तक हल नही कर पाते
ऐसे में अध्यापकों के होते हुए भी हम शिक्षा के स्तर को सुधार नहीं सकते साथ ही
स्कूलों को मुलभूत सुविधओं से लैस करना होगा जिसमे छात्रों के लिए अच्छे कमरे हो
बैठने के लिए बैंच हो स्वच्छता के लिए शौचालय हो और आधुनिकता के साथ कदम मिलाने के
लिए बिजली कम्प्यूटर और इन्टरनेट की व्यवस्था हो तब जाकर प्राथमिक स्कूल कही
अभिभावकों का विश्वास जित पाएंगे ताकि वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों के बजाय प्राथमिक
स्कूलों में भेजे अगर स्मृति ईरानी अपने पूर्ववर्तियो से कुछ अलग करना चाहती है तो
उन्हें थोड़ी सी इच्छा शक्ति दिखानी होगी तो ये काम हो सकता है लेकिन इसके लिए
उन्हें बहुत पसीना बहाना होगा क्योंकि वर्षो से जिस शिक्षा को उसके किस्मत के
भरोसे छोड़ दिया गया हो उसे सुधारना इतना आसान नही होगा....
जिन्दगी उतार चढ़ाव भरे रास्तो से होकर,फूल और काटो के बीच गुजरता एक अनुभव है,यह ब्लॉग ऐसी ही कुछ विचार को प्रस्तुत करने की कोशिश है
Sunday, October 4, 2015
बुनियादी विकास को तरसते गाँव......
बचपन से यही सुनते सुनते बड़े हो गये की भारत गाँवों का देश है, और
इसकी आत्मा गाँवो में ही बसती है, यहा की 70 प्रतिशत आबादी गाँवो में निवास करती
है, और देश के विकाश में इन गाँवों का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन अगर इन गाँवों के
विकास को देखा जाए तो सबसे ज्यादा उपेछित यही है, वर्षों से राजनेता आते रहे है और
गाँव के विकास के नाम पर तो कभी किसानो के कल्याण के नाम पर, तो कभी पक्की सड़क
बनवाने के नाम पर तो कभी स्कूल और अस्पताल खुलवाने के नाम पर वोट मागते रहे है, और
हम हर बार उनपर विश्वास करके उन्हें वोट भी दे देते है, लेकिन आज भी गाँवो में
विकास के ग्राफ को देखा जाए तो आज ये गाँव विकास तो छोडिये ये अपनी मुलभूत सुविधाओ
के लिए भी तरस रहे है,किसानों को कृषि के लिए सिंचाईं और खाद की जरूरत पड़ती है
सिंचाई के लिए उसे पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर रहना पड़ता है, क्योकि सिंचाई के
लिए कोई और वैकल्पिक माध्यम उपलब्ध ही नही है जैसे नहर, टुबेल आदि, यदि मानसून
अच्छा रहा और बारिश हो गयी तब तो ठीक है फसल भी अच्छी हो जाती है नही तो सब भगवान
भरोसे ही छोड़ दिया जाता है, जबकि खाद में कालाबाजारी करने के बाद जो बचता है वह
दिखने के लिए किसानों को दे दिया जाता है,कुछ लोगों का मानना ये भी है की वक़्त बदल
गया है अब गाँव में मोबाइल आ गया है टीवी आ गया है इंटरनेट की वजह से लोग कंप्यूटर
चलाने लगे है लेकिन क्या ये विकास है और यदि विकास है तो गाँव की बुनियादी सुविधओं
का क्या जिसके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, और मकान आते है, यदि गाँव
की सड़कों को देखा जाए तो समझ में ही नही आता की सड़क पर गड्ढे बन गये है या गड्ढे
में सड़क बनी हुई है और गलती से सड़क थोड़ी अच्छी निकली तो बचा खुचा काम नालियों से बहने
वाली पानी से पूरा हो जाता है , क्योंकि घरो से निकालने के बाद उसके लिये न तो
किसी गाँव के निवासी ने व्यवस्था की है और न ही सरकार कुछ कर रही है अगर कोई गलती
से किसी को सड़क पर पानी बह्वाने के लिए मना कर दे तो बवाल होना तय है प्राथमिक
विद्यालय की स्थिति को तो मत ही पूछिए वहा छात्र कम होते है और अध्यापक ज्यादा
बाकि स्कूल बंद होने के बाद गाँव के जानवर वहा जगह बना लेते है बिजली तो ऐसी है की
कब आती है और कब जाती है किसी को पता ही नही चलता, स्वास्थ की तो समस्या और भी बड़ी
है, अस्पताल जाने के बाद पता ही नही चल पाता की कितने हजार मरीजों पर एक डॉक्टर है,
इसलिए ज्यादा से ज्यदा मरीजों को अपने स्वस्थ के लिए झोला छाप डॉक्टरो पर ही
आश्रित होना पड़ता है अक्सर हम सुनते है की एक आदमी ने पहाड़ काट के रास्ता बना दिया
तो किसी ने अकेले ही पुरे व्यवस्था को बदल डाला ऐसे में अगर हम गाँव में एक ऐसे सरपंच
को चुने जो गाँव के विकास के लिए कार्य करे और गाँव की सभी मुलभूत समस्याओं को
ध्यान में रखकर उसके निवारण के लिए कार्य करे तो गाँव का विकास हो सकता है क्योकि
हर बड़े काम की शुरुआत छोटे से ही होती है ........
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